एक गाँव की मजबूर लड़की 12


ठाकुर साहब ने धन्नो के नंगे कूल्हे और कमर को अपने दोनों हाथों से दबोचा और चौकी पर लेते ही अपनी कमर ऊपर कि तरफ उचकाई और उनका लंड एक इंच और अंदर सरक गया उनके देखा देखि धन्नो ने भी अपनी कमर कुछ ऊपर कि और जोर से वो लंड पर बेठ गई जिससे अजगर उसके बिल में और सरक गया पर अभी काफी बहार था !इन दो धक्को में लंड आधे से ज्यादा अंदर धंस चूका था !लेकिन ठाकुर साहब के लंड कि सवारी कर रही धन्नो का चेहरा अभी भी घूंघट में ही था !और धन्नो घूंघट में ही सिसकारती हुई धीमे से बोली :-" स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स .... हाआआआ … ब .... ब बाबूजी .... बड़ा मोटा हे … आअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह … पूरा कस गया हे बाबूजी !"इतना सुनकर ठाकुर साहब ने फिर अपने दोनों हाथों से उसकी कमर और कूल्हों को पकड़ कर ऊपर कि और उचक कर एक जोर से धक्का मारा तो उनका लंड एक इंच और धन्नो कि चिकनी चूत में सरक गया !पर धन्नो एक दम से कांप कर लार्ज गई और सिहरती हुई घुघट में ही हलकी से चीखती हुई सी बोली :-" अरररररेई बब्ब … ब बाबूजी … अरीईईईईईए … मालिक … हमारी बुरिया फट जाई … धीरे से बाबूजी … इ पूरा नहीं घुसेगा बाबूजी !"घूँघट के अंदर से आई ऐसी मीठी चीख भरी आवाज़ सुन कर ठाकुर साहब बोले :-" अरे … धन्नो … बूर नहीं फटेगी … तू तो दो बच्चे पैदा कर चुकी हे जितना फटना था तेरी फट गई … !"फिर ठाकुर साहब ने अपने हाथ उठा कर धन्नो के चेहरे से साडी का पल्लू एक जटके से उठाया और उसकी पीठे पीछे नीचे गिरा दिया !धन्नो का घूंघट में छिपा सुन्दर चेहरा पूरी तरह से ठाकुर साहब के सामने आ गया था !धन्नो के मांग में लाल सुर्ख सिन्दूर चमक रहा था !माथे पर सस्ता सा मंगल टीका ऐसे लटक रहा था मानो कोई नै नवेली दुल्हन सजी हो !धन्नो कि नाक में नथुनी और कान में सस्ती मगर बड़ी बड़ी बालियां लटक रही थी !धन्नो के गले में मंगलसूत्र कि जगह एक माला लटक रही थी जिसमे एक पीला पीतल का ताबीज लटक रहा था !धन्नो के माथे पर एक सस्ती किस्म कि लाल रंग कि बिंदिया लगी थी जिसमे शीशा लगा होने के कारन वो भी चमक रही थी !धन्नो के होटों पर लिपस्टिक ऐसे चमक रही थी मानो उसने पान खा कर अपने होंट लाल कर दिए हो !ठाकुर साहब उसे चमचमाते देख कर आवाक रह गए उनका धन्नो कि चूत में फंसा लौड़ा एक ठुनकी खा गया जिसे धन्नो ने भी अपनी चूत में कंपकपाते महसूस किया ! धन्नो देखने में एक नई नवेली दुल्हन कि तरह लग रही थी !
फिर ठाकुर साहब धीरे से बोले :-"अरे .... मादरचोद …… तू तो एक दम दुल्हन कि तरह लगती हे .... जो सुहागरात मनाने आई हो … साली … दिनभर सज कर रहती हो … चल मुझे एक चुम्मा दे तो … !"इतना बोल कर ठाकुर साहब ने धन्नो के कंधे पकड़ कर अपनी और खींचा और शर्माती धन्नो के गाल पर चुम्मा लिया तो सस्ते सेंट कि खूसबू ठाकुर साहब के नाक से टकरा गई जो धन्नो ने अपने बलाउज के गले से चुपड़ा हुआ था !सस्ते सेंट कि खुसबू अपने नाक से खींचते हुए और धन्नो के गालों को चुम्मे दे देकर अपने थूक से भिगोते हुए पास खड़ी उनकी चोदा बाटी देखती हुई गुलाबी से बोले :-"देख री .... तू भी इत्र सेंट पोत के रखा कर … देख तेरी सहेली कितनी मस्त हे … सेंट लिपस्टिक … लाल चूड़ियाँ जो चुदते हुए संगीत सुनाये … सब कुछ पोत के एकदम फिट हे … तभी तो लंड में ताव भी खूब आएगा … !" इतना बोल कर ठाकुर साहब ने फिर से धन्नो कि कमर पकड़ कर ऊपर कि और उचक कर जो कस के धन्नो कि बूर में धक्का मारा तो उनका लंड धन्नो कि चूत में एक इंच और सरक गया धन्नो मानो चीख पड़ी उसकी कजरारी आँखों के कोने में आंसू कि बूँद झिलमिला उठी जो बह कर उसके गाल को काला करने लगी वो लार्ज सी गई सख्त तकलीफ में लग रही थी और गिड़गिड़ा कर बोली :-" ब .... बाबूजी .... आआआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह …… अरे .... मर गई … मोरी मैय्या … मोरी बुरिया … चिर गई … फट गई … अब बस … बाबूजी … इ पूरा गुस गइल … आह … बाबूजी अब मत हिलो … आआआह्हह्हह्ह इइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइ …… इइइइइइइइइइइइइइइइइइइ ह्ह्ह्हह उउउउउउउउउउउउह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह आउच !"इतना सुनकर ठाकुर साहब ने अपना एक हाथ उसकी कमर से हटा कर अपने लंड को टटोला तो देखा कि अभी भी उनका लंड धन्नो कि चूत से एक डेढ़ इंच बाहर ही था !पुरे दस इंच का लंड था उनका जो धन्नो कि चूत में वहाँ वहाँ घुस गया था जहा आज तक उसके पति का ५ इंच का लंड नहीं पहुँच पाया था !और अभी तक ये पूरा नहीं घुसा था !
तक ठाकुर साहब हुलस के बोले :-" अरे नहीं री … अभी पूरा कहाँ घुसा हे … लगता हे तू कभी इतने मोटे लंड पर नहीं बेठी हे … तुझ से नहीं चोदा जायेगा … तू नीचे लेट में फिर इसे पूरा घुसता हु तुझ से तो नहीं घुसेगा में तुझे ऊपर चढ़ के चोदता हु तब ये पूरा घुसेगा … चल … अब तू इस चोकी पर नीचे लेट … में तेरे ऊपर चढ़ता हु … !इतना कह कर ठाकुर साहब ने धन्नो को अपने लंड से उठने का इशारा किया तो धन्नो बड़ी मुश्किल से लंड से उठ पाई लंड मानो उसकी चूत में फंसा हुआ था !उनके लंड का मोटा सुपाड़ा पक कि आवाज के साथ उसकी गीली चूत से बाहर आया ऐसी आवाज आई जेसे किसी बोतल के मुह से कोई टाइट कार्क निकला हो !धन्नो में अपना मुह छत कि तरफ करके ताक़त से लंड को चूत से बाहर निकाला था इसलिए उसकी नजर तो ठाकुर साहब के लंड पर नहीं पड़ी थी पर इतनी दूर धन्नो कि चूत का पानी पी पी कर उनका काला नाग मानो अजगर कि तरह भयंकर हो गया था जिसे देख कर चौकी के पास खड़ी गुलाबी सहम सी गई उसे आज ठाकुर साहब का लौड़ा ज्यादा मोटा और लम्बा और भयंकर लग रहा था !दूसरे ही पल ठाकुर साहब चौकी के नीचे खड़े हो गए उनका लंड खूब तन्ना रहा था किसी बड़े गन्ने के मोटे टुकड़े जैसा जो एक दम ९० डिग्री के कोण में खड़ा उनके पेट के हुंडी के ऊपर उनके सीने तक लग रहा था !धन्नो कि अधमुंदी आँखों ने अब ठाकुर साहब का लौड़ा नहीं देखा वो फटाफट अपनी साडी और पेटीकोट को अपनी कमर में चढ़ा कर शर्म के मारे आँखे मूँद कर और अपनी दोनों झांघे पूरी तरह से फेला कर के चौकी पर लेट गई और अपनी चूत पर आने वाले प्रहार का इन्तजार करने लगी !घनी झांटों से लदी और काली मोटी फांकों वाली चूत अब ठाकुर साहब के सामने थी !झांघे फैलाने कि वजह से योनि होंट अलग हो गए थे और बूर में हलकी हलकी अंदर ललाई झांक रही थी !बूर के अंदर से कुछ बाहर कि तरफ बहा धन्नो कि चूत का गीला रस उसे और भी सुन्दर बना रहा था !धन्नो के चेहरे कि तरफ ठाकुर साहब ने देखा तो पाया उसकी आँखे बंद हे पर वो अपने होटों को हलके हलके काट रही थी कुछ मुह खुला हुआ था और सांसे तेज तेज चल रही थी उसका ब्लाउज में कसा सीना ऊपर नीचे हो रहा था उसके शरीर को बड़ी लंड कि प्यास लग रही थी !
फिर ठाकुर साहब धन्नो के झाँगों के बीच अपने घुटने मोड़ते हुए उकड़ूँ हो कर बेठ गए !और अपने मोटे लंड को जो उनके पेट और सीने से लगा हुआ था नीचे खींच कर उसके सुपाड़े को धन्नो कि चूत के सुराख़ पर टिका दिया और थोडा जोर लगाया तो सुपाड़े का मुह हल्का सा धन्नो कि चूत के छेद में फंस गया !फिर ठाकुर साहब चौकी पर दोनों हाथ जमा कर धन्नो के ऊपर अधर हो गए और उनके मजबूत नितम्बो ने एक जोर दार नीचे कि तरफ धक्का मारा तो उनका लंड चूत को किसी ककड़ी कि तरह फाड़ते हुए धन्नो कि चूत में एक झटखे में आधे से ज्यादा घुस कर कस गया !धन्नो मानो किसी जिबह होते बकरे कि तरह चीख उठी :-"आआआ … आअह्ह्ह्ह …रॆऎऎऎ … अरे बाप रे … अरे माई री … मोरी बुरिया फट गई रे … माई … !"ठाकुर साहब ने धन्नो कि चीखों पर कोई ध्यान नहीं दिया और उसके कंधे पकड़ कर धक्के पर धक्के मारते रहे … धन्नो बिलबिलाती रही वो जितना बाहर खींचते फिर उस से ज्यादा घुसा देते और धन्नो ज्यादा बिलबिलाती कराहती रोती पर ठाकुर साहब अपने नितम्ब उठा उठाकर घनघोर धक्के मारते रहे और इस प्रकार १२ - १५ धक्कों के बाद अब ठाकुर साहब का मोटा काला नाग पूरी तरह से धन्नो के छोटे से बिल में समां गया था और उनके बड़े बड़े आंडे धन्नो के चूतड़ से टकराने लगे मानो वे उसकी गांड में गुसना चाहते हो !तब ठाकुर साहब अब अपने धक्के रोक कर धन्नो से बोले :-" ले देख री … अब पूरा लंड धंस गया हे री … दो बच्चे पैदा करने के बाद भी तेरी बूर में काफी कसाव हे … बड़ा मजा आ रहा हे !"ये कहते कहते ठाकुर साहब ने धन्नो के बलाउज को खोल दिया और और उसकी ब्रा को भी उसकी चुचियों के ऊपर कर दिए और उन पर टूट पड़े !दोनों कसी हुई चुचियों को अपने हाथ में ले कर ऐसे मसलने लगे मानो कोई ओरत थाली में आता गूँथ रही ही !चुचियों कि मसलाहट धन्नो को चुदासी बना दिया था ठाकुर साहब का लंड फंसा होने के बाद भी उसकी चूत कि दीवारे ढेरों पानी छोड़ रही थी !उसकी छोटी सी बूर में लंड वहाँ सैर कर रहा था जहाँ आज तक कोई लौड़ा नहीं पहुँच सका था और साथ में ठाकुर साहब अनुभवी हाथों से उसकी चुचियों कि मिजाई ने धन्नो को आनंद के सातवें आसमान पर पहुंचा दिया था !धन्नो को दर्द के साथ असीम आनंद भी मिल रहा था और पास में खड़ी गुलाबी भी ठाकुर साहब का लंड धन्नो कि चूत में फंसा देख रही थी और उसकी चूत भी बूरी तरह से पनिया गई थी !गुलाबी भी सिसकी मारते मारते अपनी साडी के ऊपर से ही अपनी चूत सहलाती जा रही थी !इधर ठाकुर साहब आँखे बंद कर के लेटी धन्नो के लिपस्टिक से रंगों होटों को अपने होटों में कैद करके बुरी तरह से चूसने लगे थे !धन्नो के पूरे बदन और बूर में मानो आग सी लग गई ! उसे आज मालूम पड़ रहा था कि सम्भोग का आनंद क्या होता हे उसका पति उसकी चूत में बस दो मिनिट ही टिकता था और होंटों कि चुसाई और चुचियों कि मिजाई तो वो कभी करता ही नहीं था !धन्नो ने अपनी मुंदी आँखों को कस लिया और वो पूरी तरह से गनगना गई वो भी हलके हलके अपने होटों से ठाकुर साहब के होटों को पकड़ रही थी !ठाकुर साहब ने उसके दोनों होटों को बारी बारी से चूसा और फिर उन्हें आजाद कर के धन्नो से बोले :-"धन्नो तेरी चूचियां भी किसी कुंवारी छोकरी कि तरह टाइट हे री … किस चक्की कि का आटा खाती हे साली … और ऊपर से तेरे बनाव श्रृंगार ने तो मेरे लंड में तूफ़ान मचा दिया हे री … !"
फिर ठाकुर साहब अपने चूतड़ उठा उठा कर धन्नो कि टाइट बूर में ताबड़तोड़ धक्के मारने लगे !खप -खप … खच -खच … पक पक .... चट -चट .... खपाक खप्प .... खपाक खप्प .... फक्क - फक्क … साथ में ठाकुर साहब के मुह से लकड़ी काटते लकड़हारे जैसी आवाजे ऐ .... हुँहह .... ऐ हहहह और धन्नो के मुह से कभी मादक और कभी दर्द भरी सीत्कारें अरीई .... उईईईईईई … आअह्हह्हह .... उउउउउंम .... हाँ … ऐसे ही बाबूजी …… जरा धीरे बाबूजी स्स्स्स्स्स्स्स्स्स हुउउउउउउउउउउउउ ऐसी मिली जुली आवाजों से पूरी कोठरी गूंज रही थी ! ज्यूँ धन्नो कि बूर पानी छोड़ने लगी अब पच्च -पच्च कि आवाजे आने लगी और बूर का पानी ठाकुर साहब के लौड़े को भिगोने लगा !लंड किसी पिस्टन कि सट सट करते उसकी बूर में आ जा रहा था !धन्नो अपनी आँखे मूंदे अपनी रगड़ाई का आनंद ले रही थी उसकी दोनों टांगे खुदबखुद उठ कर ठाकुर साहब कि कमर को झकड़ रही थी इस कारन उसकी चूत ऊपर हो गई थी और लंड और गहराई में जा रहा था !धन्नो का मुंह खुल गया था और वो आनंद के मारे मुह से ही सांस ले रही थी ऐसा लग रहा था मानो वो हांफ रही थी !कभी गहराई में जोरदार धक्का लगता तो धन्नो के मुह से आह निकल जाती !बगल में खड़ी गुलाबी के चूत में भी आग लग गई थी और अब वो पहली बार उन दोनों के सामने अपनी साडी कमर तक कर अपनी तीन अँगुलियों को अपनी चूत में अंदर बाहर कर रही थी हालाँकि धन्नो और ठाकुर साहब का ध्यान गुलाबी कि तरफ नहीं था वे अपनी ही मस्ती में खोये अपनी मंजिल तलाश रहे थे !अंगुलियां डालते गुलाबी का मन कर रहा था कि वो धन्नो को हटा कर खुद ठाकुर साहब के मूसल लंड के नीचे लेट जाये पर वो ऐसा सिर्फ सोच ही सकती थी कर नहीं सकती थी !ठाकुर साहब अब तूफानी गति से धन्नो कि चुदाई कर रहे थे अब वो काफी ऊपर हो कर तेजी से नीचे आ रहे थे आधे से ज्यादा लंड बाहर खींच कर एक झटखे में वापिस ठांस रहे थे मोटे लंड से चुदाई के कारन धन्नो कि बूर कि हालत देखने लायक थी !उसकी ठोस और टाइट बूर बिलकुल पिलपिली हो रही थी चूत के मोटे होंट सूज कर और मोटे हो रहे थे और उसकी हालत देख कर लग रहा था उसने जिंदगी में कभी इतनी जोरदार चुदाई कभी नहीं करवाई थी !धन्नो कि चूत अब तक तीन बार पानी छोड़ चुकी थी और उसे अब मजे कि जगह चूत में दर्द भरी टीस महसूस कर रही थी अब सीओ सोच रही थी कब ठाकुर साहब का वजनी लंड उसकी चूत से बाहर निकले !
अब ठाकुर साहब धन्नो के कंधे पकड़ कर उसे कस कस कर चांप रहे थे उनके बदन में किसी भूकम्प कि तरह थरथराहट शुरू हो गई थी !अब वे धन्नो कि बूर में अपने लौड़े को ठाँसने के साथ साथ धन्नो के बदन को अपनी बाँहों में कसने भी लगे !अब धन्नो भी समझ गई कि ठाकुर साहब का लंड अब वीर्य कि बौछार करने वाला ही हे !इसलिए इस बदनतोड़ चुदाई को समाप्त करने के लिए वो भी अपने चूतड़ उचकाने लगी उसे मालूम था कि उसके इस सहयोग से ठाकुर साहब जल्दी छूटेंगे !धन्नो के चूतड़ उचकाने से खुद धन्नो कि चूत में भी एक नया तूफान पैदा होने लगा था और वो चौथी बार छूटने कि तैय्यारी में थी !तभी ठाकुर साहब के भरी गले से एक आह भरी कराह निकली क्यूंकि ठाकुर साहब के बड़े बड़े आलू जैसे आंडूओ से गरम गाढ़ा वीर्य चल पड़ा था !गुलाबी भी अपने चरम पर पहुँच गई थी और साडी पेटीकोट नीचे कर के लम्बी लम्बी साँसे ले रही थी !दूसरे ही पल ठाकुर साहब के लंड के मुह ने पानी ऐसे छोड़ना शुरू किया जैसे किसी बन्दूक से गोली छूटती हे !वीर्य के फव्वारे ने धन्नो के बच्चेदानी के मुह को मानो पूरी तरह से डुबो दिया !वीर्य कि गर्मी पा कर धन्नो भी सीत्कार मार कर झड़ने लगी !इस बार वो बहुत तेज झड़ी थी और और उसके मुह से चीखें निकल रही थी वो चिल्ला रही थी :-" स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स अरी मरी में … बाबूजी … ओह्ह्ह आईईईई … अरी …माईईईइ … बाबूजी … अरे बाबूजी .... मोर निकसल … मोरी बुरिया से पानी … निकसल बाबूजी … में तो खाली हो गई .... में बिलकुल हलकी हो गई बाबूजी .... मोरी बुरिया से पूरा पानी निकस गया !"इसके साथ ही वो अपनी कमर उठान करके उचका दिया और झड़ने लगी !ठाकुर साहब का लंड ८-१० झटके मार कर अपना पानी धन्नो कि बूर में काफी गहराई में फेंकता रहा !उस के साथ धन्नो का पानी भी मिलता रहा !वीर्य के आखरी बूँद छोड़ने तक लंड धन्नो कि बूर में जठखे लेता रहा !और दोनों आँडूओ का पानी पूरी तरह से धन्नो कि बूर में खाली कर दिया था किसी घोड़े जितना पानी छोड़ा था ठाकुर साहब ने !ठाकुर साहब के दोनों आंडे पूरी तरह से खाली हो चुके थे ठाकुर साहब का लंड भी धन्नो कि बूर में मानो बूरी तरह से पस्त हो चूका था !
बूर में वीर्य पसर कर भर गया था और ऐसा लग रहा था अब धन्नो कि बूर में वीर्य के अलावा कुछ भी नहीं हे अब ठाकुर साहब के ढीले पद चुके लंड के किनारो से वीर्य बाहर उबल रहा था और धन्नो के झांघों और गांड से बह कर नीचे चौकी पर इकट्ठा हो रहा था !कुछ देर तक ठाकुर साहब धन्नो के ऊपर ही पड़े रहे मानो उनकी सारी ताकत धन्नो के बूर में ही निकल गई हो !फिर एक गहरी साँस लेकर ठाकुर साहब धन्नो के ऊपर से हटे और अपने लंड को धन्नो कि बूर से बाहर खींच लिए !लंड बाहर आया तो उस पर वीर्य और धन्नो कि चूत का पानी लगा हुआ था और अभी भी लंड काफी विशाल लग रहा था !धन्नो को अपनी चूत ख़ाली ख़ाली लगी उसमे से बचा पानी बाढ़ कि तरह बह चला इतनी देर चुदाई के बाद धन्नो कि चूत के होंट आपस में नहीं जुड़ सके और धन्नो को अपनी खुली चूत में ठंडी हवा लगनी महसूस हुई !ठाकुर साहब का झड़ा हुआ लंड भी लहरा रहा था मानो वो फिर चूत में घुस जाना चाहता हो !ठाकुर साहब के उठते ही धन्नो तुरंत उठी और अपने चूत के पानी को अपने पेटीकोट के निचले हिस्से से पोंछ कर साफ करने लगी !उधर गुलाबी अपने पेटीकोट से ठाकुर साहब का लंड साफ़ कर रही थी !थोड़ी देर में ही लंड पर का सारा माल गुलाबी ने अपने पेटीकोट पर ले लिया और लंड साफ़ हो गया !धन्नो चौकी से तुरंत नीचे उतरी और अपने कपड़ों को ठीक करने लगी अपनी चूचियां वापस ब्रा और ब्लाउज में कर ली अपना पेटीकोट साडी ठीक कर ली और अपना लम्बा घूंघट फिर से निकाल लिया !ठाकुर साहब से हुई चुदाई कि पुरानी कहानी में धन्नो इस तरह खो गई मानो गहरा सपना देख रही हो !तभी पुरानी कहानी में खो चुकी धन्नो के पास खड़ी गुलाबी ने उसे धकेल दी और बोली :-"कहाँ खो गई हे तू .... किस दुनिया में .... लगता हे तू ठाकुर साहब से हुई पहली चुदाई के सपने में खो गई हे .... चल सावत्री को सब कहानी बता दी !"
तभी सावत्री भी धन्नो के गम्भीर और खोये खोये चेहरे कि और देखते हुए बोली :-" … चलो चाची … जल्दी चलो … कितनी देर हो रही हे .... मुझे देर हो जायेगी तो मेरी माँ मुझे डांटेगी !"इतना सुनकर धन्नो मानो अपने को उन पुराने ख्यालों से बाहर खींच लाइ और बोली :-" अच्छा चलती हु … चल … !"ये बोल कर धन्नो भी खाट से खड़ी हो गई और अपने साडी के पल्लू को ठीक करने लगी !सावत्री भी खाट से खड़े होते हुए बोली :-" जल्दी चलो चाची … देखो कितनी देर हो रही हे .... !"गुलाबी भी सावत्री से बोली :-" तू यहाँ आती जाती रहना … धन्नो चाची के साथ … आज तो कितना मजा आया तुझे !"ये सुनकर सुक्खू भी बोला ;-"हाँ आना तब मुझे तेरी बूर देना और तू मेरा लंड लेना .... " ये बोल कर वो राक्षशों कि तरह हो हो कर हंसने लगा !सावत्री सुक्खू के मुह से ये सुनकर लजा गई और पहले कि बात याद कर सिहर गई !फिर धन्नो गुलाबी से बोली :-" आज तूने भी मेरी कहानी बता कर मेरी पुराणी यादें ताजा कर दी … कितनी पुरानी बात हे तब मेरे दोनों बच्चे कितने छोटे छोटे से थे … !"तब गुलाबी बोली :-" तेरी कहानी पूरी कहाँ हुई हे … जब तू दूसरे दिन आएगी तो आगे कि तेरी कहानी इस छोकरी को सुनाऊँगी … !"इतना बोल कर गुलाबी ने पास खड़ी सावत्री कि एक चूची को दुपट्टे से नीचे और समीज के ऊपर से मसल दी !सावत्री एक दम सन्न रह गई और गुलाबी के हाथ को एक दम झटकते हुए और सिसकी ले कर बोली :-" क्या कर रही हे चाची छी चाची धत्त !"ऐसा बोलते हुए गुस्से वाला मुह बना कर कोठरी से बाहर आ गई पीछे पीछे वे तीनो भी बाहर आ गए !फिर सावत्री और धन्नो गुलाबी के घर से अपने गांव कि और चल दी !सावत्री दो दो बार मूसल जैसे लंडों से बुरी तरह से चुद कर कुछ थकावट महसूस कर रही थी !कुछ तेज क़दमों से चलते चलते वे कुछ ही देर में अपने गांव के पास आ गई थी !अपना गांव आते ही धन्नो सावत्री से अलग हो कर कुछ घूम कर अपने घर में चली गई !अब शाम का अँधेरा छाने लगा था !
सावत्री ने देखा उसकी माँ अब शाम का खाना बनाने कि तैय्यारी में लगी थी !फिर सावत्री भी अपनी माँ के साथ खाना बनाने में लग गई !पर सावत्री के पुरे बदन और बूर में मीठा मीठा दर्द हो रहा था अभी भी उसकी बूर हलकी हलकी चूं रही थी उसकी बूर से ठाकुर साहब और सुक्खू का रस हल्का हल्का टपक रहा था !पर आज का दिन उसकी लिए नया और मस्ती भरा था !एक ही दिन में दो नए मर्दों से उसकी जान पहचान हो गई थी और उनके बड़े बड़े लंडों से चुदने से सावत्री बहुत खुश थी उसे बदन बिलकुल हल्का लग रहा था !कुछ दिन के बाद धन्नो सावत्री से गांव के बाहर मिली और बोली :-"अरे … सुन … तू तो एकदम से गायब सी हो गई .... कितने दिन हो गए दिखी ही नहीं … !"तब सावत्री बोली :-" क्या करू चाची में सोच रही थी कि तेरे साथ माँ ने देख लिया तो बूरा हो जाएगा … !"तब धन्नो बोली :-" कहाँ जा रही हो … ? पंडित जी कि दूकान पर क्या … !"तब सावत्री बोली :-" हाँ चाची … और कहाँ जाउंगी … !"तब धन्नो बोली :-" क्यूँ … गुलाबी चाची के गांव नहीं चलोगी … वह ठाकुर साहब और तेरा सुक्खू चाचा तुझे याद कर रहे हे .... और तेरे बदले में मुझे अपनी बजवानी पड़ती हे ही ही ही !" करती धन्नो चाची हंस पड़ी !ये सुनकर सावत्री भी मुस्कुरा दी पर बोली कुछ नहीं !तब धन्नो बोली :-" क्यूँ मन भर गया तेरा … अब मन नहीं करता क्या मजे लेने का … !"तब भी सावत्री मुस्कुरा कर रह गई !तब धन्नो फिर बोली :-" अब आज चलेगी कि नहीं गुलाबी चाची के गांव ?"ये सुनकर सावत्री मुस्कराई ना में हलके से गर्दन हिलाई पर चुप ही रही !तब धन्नो फिर बोली :-"क्यों नहीं चलेगी ?"तब सावत्री बोली :-" ये बात नहीं चाची पर रोज रोज वो काम नहीं !"तब धन्नो बोली :-" क्या वो काम री … क्या तुझे लंड अच्छा नहीं लगा उस दिन … !"तब सावत्री बोली :-" छी चाची ऐसे मत बोलो !"तब धन्नो बोली :-" अरे … चल कोई बात नहीं … फिर किसी दिन तुझे चुपके से वहाँ ले चलूंगी … बोल … मेरे साथ चलेगी कि नहीं !"तब सावत्री धीमे से लजा कर बोली :-" हाँ … चलूंगी … !तब धन्नो धीमे से बोले :-" पंडित जी तो तेरी बूर रोज ले रहे होंगे न … वे तो तेरी चुदाई करते होंगे न .... उनका लौड़ा तो तेरी चूत बजाता होगा ना !"ये सुनकर सावत्री बोली :-" छी चाची … केसी गन्दी गन्दी बातें करती हो … !"तब धन्नो बोली ;-' अरे हरजाई इतना कुछ होने के बाद भी तू लजा रही हे .... बोल ना खुल कर .... रोज रोज मजा लेते हे ना पंडित जी तेरा !"इतना सुनकर सावत्री धीमे से बोली :-" हाँ चाची रोज लेते कभी मेरा महीना आ जाता हे तो चार दिन बाद एक ही दिन में दो बार .... " इतना कहते कहते वो लजा कर चुप हो गई !फिर धन्नो बोली :-" चल ठीक हे खूब मजा ले तू … तुझे बड़ा अच्छा मौका मिला हे रोज मजा लेने का … खूब जवानी के मजे लूट !"फिर कुछ धन्नो गम्भीर हो कर बोली ;-" सुन तुझे एक काम कि बात कहनी हे मुझे … इसलिए इस रास्ते में तुझ से मिलने के लिए काफी देर से इन्तजार कर रही हु !"इतना सुनकर सावत्री धन्नो कि तरफ देखती हुई बोली :-" क्या काम हे चाची !"तब धन्नो बोली :-" वो कुछ दिन पहले शगुन चाचा आये थे … मेरी बेटी के लिए रिश्ता बता रहे थे … !"इतना सुनकर सावत्री बोली :-" तब चाची !"तब धन्नो बोली :-" अरे तब क्या … उसकी पहली शादी तो टूट गई … बड़ी मुस्किल से ये रिश्ता मिला हे … में भी भगवान से मांगती हु कि किसी तरह से बेटी का घर फिर से बस जाए !"इतना सुनकर सावत्री पूछी :-" तो ठीक ही तो हे पर मेरे से काम क्या हे … !"तब धन्नो बोली :-" अरे वो क्या हे कि लड़के वाले मेरी बेटी को देखना चाहते हे आज कल कोई भी बिना देखे रिस्ता करता नहीं हे !"तब सावत्री बोली :-" तो देखने दो ना चाची मुसम्मी दीदी कौन सी दिखने में ख़राब हे वो सुन्दर तो हे … !"तब धन्नो बोली :-" तू ठीक कहती हे पर मुसम्मी सूरत से ठीक दिखती हे पर करतूत में नहीं !"

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